दर्शन चक्र क्रिया

 




                     
दर्शन चक्र क्रिया, एक प्रभावी ध्यान प्रयास है जिसे कि कुंडलिनी जागृति और मन की शांति को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस क्रिया को हिंदी में भी दर्शन चक्र क्रिया के नाम से जाना जाता है। इस क्रिया का उद्देश्य मन को स्थिर करना, चिंताओं को दूर करना, और आध्यात्मिक अनुभव को प्राप्त करना है।

यहां दर्शन चक्र क्रिया के लिए ध्यान का एक सरल मार्ग दिया गया है:

सीधे बैठें और अपने शरीर को सुखी, स्थिर और आरामदायक स्थिति में रखें।


आंखें बंद करें और आंतरिक ध्यान को सक्रिय करें।


उद्दीपन मुद्रा बनाएं: अपने दाएं हाथ की मध्यमा उंगली को अपने अंगूठे और मध्यमा उंगली के अंगूठे से स्पर्श करें। इसे हाथ की ऊर्ध्व मुद्रा कहा जाता है।


श्वास लें: गहरी सांस लें और उसे धीरे-धीरे छोड़ें। सांस लेने के बाद थोड़ा सा ध्यान करें और ध्यान केंद्र में आत्मा को महसूस करें।


मंत्र का जाप करें: "वाहे गुरु" का मंत्र जाप करें। हर बार इस मंत्र को जपते समय, आंखों को आंतरिक ध्यान में एकाग्र करें और ध्यान के केंद्र में मंत्र की ध्वनि को सुनें।


क्रमिक विभाजन: 5 मिनट तक "वाहे गुरु" मंत्र का जाप करें। इसके बाद, आंखों को खोलें और समय के लिए ध्यान करें। ध्यान को बिना किसी ध्यान वस्त्र (वस्त्र) के कीचड़ से शुद्ध करें और फिर से "वाहे गुरु" का मंत्र जप करें।


क्रिया को 31 मिनट तक बढ़ाएं। यदि आप इसे और अधिक समय तक करना चाहें, तो आप ऐसा कर सकते हैं।


यह ध्यान क्रिया निरंतर अभ्यास की आवश्यकता है ताकि आप इसके अधिक लाभ प्राप्त कर सकें। यदि आप पहले से ही किसी ध्यान प्रयास के अनुभवी हैं, तो आप दर्शन चक्र क्रिया को अपने ध्यान सेशन में शामिल कर सकते हैं, लेकिन नए लोगों के लिए ध्यान को धीरे-धीरे बढ़ाना सुझावित होता है।

दर्शन चक्र क्रिया ध्यान और प्राणायाम का एक प्रकार है जो कि कुछ साधकों द्वारा नियमित रूप से अभ्यासित की जाती है। यह क्रिया कुंडलिनी जागरण और मानसिक शांति में सहायता करने के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। दर्शन चक्र क्रिया को गुरु नानक देव जी ने सिख समुदाय के लिए उपदेशित किया था।


यह क्रिया चार मुख्य अंगों से मिलकर बनी होती है - मन्त्र, मुद्रा, ध्यान और श्वासयाम।

इसके अभ्यास के लिए आप निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:

आराम से बैठें और अपने स्पाइन को सीधा रखें।


आँखें बंद करें और मन को शांत करें।


अपने हाथों को आपकी छाती पर रखें, अंगूठे को मिलाएं और बाकी उंगलियाँ बाहर की ओर फैलाएं। यह मुद्रा कर्मिंडी मुद्रा कहलाती है।


ध्यान रखते हुए अपने संगीत गुरु के नाम को आवाज़ में जपें। आप उच्चारण कर सकते हैं, "वाहे गुरु, वाहे गुरु, वाहे गुरु, वाहे जीओ"। इसे मन्त्र जाप कहा जाता है।


मन्त्र जाप के समय आपको एक नियमित और समान राशि में श्वास लेना होगा। पूरे मन्त्र को दोहराने के दौरान नाक से दीर्घ श्वास लें और धीरे-धीरे मन्त्र को उच्चारण के साथ छोड़ें।


इसे 31 मिनट तक करें।


यह क्रिया आपको चिंताओं और स्ट्रेस से छुटकारा दिलाने, मन को शांत करने, मनोवैज्ञानिक स्थितियों को बढ़ाने और स्पिरिचुअल विकास को प्रोत्साहित करने में मदद करती है। यह क्रिया अपनी शक्ति और प्रभाव के लिए प्रसिद्ध है और आपकी ध्यान प्रणाली को सुगम, सुव्यवस्थित और गहराई से जागृत करने में मदद कर सकती है।

कृपया ध्यान दें कि यह क्रिया श्रद्धा और नियमित अभ्यास की आवश्यकता होती है। अगर संभव हो, तो इसे गाइड के निर्देशन में एक अनुभवी गाइड के साथ करना बेहतर               है

दर्शन चक्र क्रिया हिंदी में एक प्राचीन ध्यान प्रणाली है जो योग और मेडिटेशन का हिस्सा है। इस क्रिया को ध्यान के माध्यम से किया जाता है और इसका उद्देश्य अचंभा, प्रकाश, और शांति के अनुभव को प्राप्त करना है। यह क्रिया गुरु नानक देव जी की शिक्षा का हिस्सा है और सिख धर्म में व्यापक रूप से अभ्यास की जाती है।

यहां दर्शन चक्र क्रिया को हिंदी में करने के लिए विधि दी गई है:

बैठें: एक सुखासन (पीठ पर सीधी सीट जिसे पूरे आराम से बैठा जा सके) पर बैठें। अपनी स्पाइन नेचुरल रखें और आंतरिक शांति के लिए ध्यान केंद्रित करें।


हाथ पोजिशन: अपने आठों उंगलियों को अपने थम्ब के साथ मिलाएं और हथेली को आपकी सिर के ऊपर रखें। हाथों को बैठते समय ध्यान में बनाएं रखें।


मन्त्र जाप: अपनी सांस को अंदर लें और वहीं रखें। मंत्र को आवाज़ में बोलते हुए निम्न मंत्र का जाप करें: "वही गुरु, वही जोति, मेरा अधार, अदार तेरा।"


मुद्रा: मन्त्र के जाप के दौरान, एक आंख को बंद करें और दूसरी आंख को धीरे से बंद करें। इसे शांति और एकाग्रता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।


ध्यान का केंद्र: अपनी मानसिक ध्यान धीरे से अपने मस्तिष्क के बीच में स्थानीय रूप से ध्यान केंद्रित करें। यह आपके भाग्य और दर्शन की ऊर्जा को संतुलित करने में मदद करेगा।


सांस की नियमितता: मंत्र के जाप के साथ, अपनी सांस को धीरे-धीरे और नियमित रखें। सांस लेने और छोड़ने की गति को अपने स्वयं के रिथ्म के साथ मेल खाने का प्रयास करें।


क्रिया का समापन: आप इस क्रिया को किसी भी समय अपनी योग्यता और आवश्यकता के अनुसार कर सकते हैं। आप इसे 31 मिनट तक कर सकते हैं या अपनी ध्यान साधना की अभ्यास सत्र के बाद इसे कर सकते हैं।


ध्यान के दौरान अपने मन को शांत रखने का प्रयास करें और इस क्रिया को नियमित रूप से अभ्यास करने के लिए समय निकालें। यह आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकता है।


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