अमरनाथ यात्रा फुल डिटेल्स 2024एवं अमरनाथ की कथा

 अमरनाथ यात्रा 




2023 में अमरनाथ यात्रा कब शुरू होगी?


श्री अमरनाथजी यात्रा 1 जुलाई 2023 को शुरू होगी और 31 अगस्त 2023 को समाप्त होगी। इस वर्ष श्री अमरनाथजी यात्रा 62 दिनों की है।

अमरनाथ यात्रा में कितना समय लगता है?
पहलगाम से अमरनाथ गुफा की दूरी लगभग 36 से 48 किमी है और लगभग 3 से 5 दिनों (एक तरफ) में पूरी होती है। अधिकांश तीर्थयात्री इस मार्ग को पसंद करते हैं क्योंकि यह न केवल बालटाल की तुलना में थोड़ा आसान है बल्कि सुंदर भी है। इसलिए, यदि आपके साथ वरिष्ठ भक्त हैं, तो यह बेहतर मार्ग है।


अमरनाथ यात्रा के लिए आयु सीमा क्या है?

अमरनाथ यात्रा के लिए कुछ आयु प्रतिबंध भी हैं। अमरनाथ यात्रा में 13 वर्ष से कम या 75 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति भाग नहीं ले सकता है। 6 सप्ताह से अधिक गर्भवती महिलाओं के लिए अमरनाथ यात्रा पर प्रतिबंध है।

यात्रा के लिए तैयारी

इस यात्रा क दौरान अपने साथ पर्याप्त गर्म कपड़े, जरूरी दवाईयां और हल्का स्नैक्स रखें। टाॅर्च, माचिस, पावर बैंक, पाॅलीथिन बैग आदि रखें और यात्रा के लिए मिले निर्देशों का पालन जरूर करें।

अमरनाथ यात्रा 2023 के लिए आवश्यक दस्तावेज

1. 28 जून 2023 तक डॉक्टर द्वारा जारी मेडिकल सर्टिफिकेट।
2. चार पासपोर्ट साइज फोटो।
3. आधार कार्ड या सरकार द्वारा जारी कोई पहचान पत्र।

अमरनाथ यात्रा 2023

अमरनाथ की यात्रा हिन्दू को प्रमुख धार्मिक यात्रा है। अमरनाथ की यात्रा भगवान शिव के प्रकृतिक रूप से बने शिव लिंग के दर्शन करने के लिए की जाती है। यह यात्रा अत्यन्त कठिन है। अमर नाथ यात्रा पर जाने के भी दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से इन दोनों मार्गो से आगे की यात्रा पैदल होती है। पहलगाम से जानेवाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल 14 किलोमीटर है और यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टिg से भी संदिग्ध है। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। रास्ते में किसी अनहोनी के लिए भारत सरकार जिम्मेदारी नहीं लेती है।

पहलगाम जम्मू से 315 किलोमीटर की दूरी पर है तथा यहीं से तीर्थयात्रियों की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है। पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं है।

चंदनबाड़ी से 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। यहाँ पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।

शेषनाग से पंचतरणी 8 मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं। महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। यहाँ पांच छोटी-छोटी सरिताएँ बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहाँ सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं।

अमरनाथ की गुफा यहाँ से केवल 8 किलोमीटर दूर रह जाती हैं और रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुँचते ही सफर की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है!

अगर श्री अमरनाथ जी की यात्रा पर जाने का कर रहे है प्लान तो आपको ये बाते जानना जरूरी है

अगर आप इस वर्ष श्री अमरनाथ जी की यात्रा पर जाने का प्लान कर रहे हैं। तो यात्रा पर जाने से पूर्व आप सभी का इस संदेश में बताए गए बातों को जानना अत्यंत आवश्यक है।

सबसे पहले श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड द्वारा यात्रा की तारीख घोषित की जाती है जैसे यात्रा कब से शुरू होने वाली है और यात्रा कब तक चलेगी। पिछले वर्षों के अनुभव के आधार पर जनवरी माह के दूसरे अथवा तीसरे सप्ताह तक श्राइन बोर्ड द्वारा यात्रा की तारीख निश्चित कर दी जाती है।

उसके बाद अगला स्टेप होता है यात्रा के लिए अपना मेडिकल करवाना। पिछले वर्षों के अनुभव के आधार पर मेडिकल प्रयायतः 15 फरवरी के बाद से शुरू हो जाते हैं। मेडिकल करवाने के लिए प्रत्येक स्टेट के सभी सिटीज की हॉस्पिटल्स की लिस्ट निकलती है। आप उन हॉस्पिटल से अपना मेडिकल करवा सकते हैं। यह अवश्य याद रखें कि जब आपके शहर के हॉस्पिटल की लिस्ट आ जायेगी उसके बाद ही आप अपना मेडिकल करवा सकते हैं।

आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें कि 15 फरवरी तक सभी हॉस्पिटल्स की लिस्ट नहीं आती है। धीरे धीरे सभी हॉस्पिटल की लिस्ट श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर अपडेट होती रहती हैं। आप श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड की http://www.shriamarnathjishrine.com/ वेबसाइट पर जाकर हॉस्पिटल की लिस्ट चेक कर सकते हैं।

तीसरा स्टेप है यात्रा के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवाना। पिछले वर्षों के अनुभव के आधार पर यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन मार्च के पहले सप्ताह से प्रारम्भ हो जाते हैं। रजिस्ट्रेशन के लिए बैंक की लिस्ट निकलती है । अपने शहर के बैंक का नाम आप श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर जाकर चेक कर सकते हैं।बैंक की लिस्ट आने के बाद ही आप अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं।

श्री अमरनाथ जी की यात्रा प्रतिवर्ष लगभग जून के अंतिम सप्ताह अथवा जुलाई के पहले सप्ताह से प्रारम्भ होती है एवं रक्षाबंधन पर्व के दिन सम्पन्न हो जाती है।

अमरनाथ की कथा

इस पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने भगवती पार्वती को मोक्ष का मार्ग दिखाया था। इस तत्वज्ञान को 'अमरकथा' के नाम से जाना जाता है इसीलिए इस स्थान का नाम 'अमरनाथ' पड़ा। यह कथा भगवती पार्वती तथा भगवान शंकर के बीच हुआ संवाद है। यह उसी तरह है जिस तरह कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हुआ था।
अगले पन्ने पर क्यों सुनना चाहती थीं पार्वती अमरकथा...

अमरनाथ कथ ा : सती ने दूसरा जन्म हिमालयराज के यहां पार्वती के रूप में लिया। पहले जन्म में वे दक्ष की पुत्री थीं तथा दूसरे जन्म में वे दुर्गा बनीं। एक बार पार्वतीजी से ने शंकरजी से पूछा, ‘मुझे इस बात का बड़ा आश्चर्य है कि आपके गले में नरमुंड माला क्यों है? ’ भगवान शंकर ने बताया, ‘पार्वती! जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ है उतने ही मुंड मैंने धारण किए हैं।’

पार्वती बोली, ‘मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है, परंतु आप अमर हैं, इसका कारण बताने का कष्ट करें। मैं भी अजर-अमर होना चाहती हूं?'

भगवान शंकर ने कहा, ‘यह सब अमरकथा के कारण है।’

यह सुनकर पार्वतीजी ने शिवजी से कथा सुनाने का आग्रह किया। बहुत वर्षों तक भगवान शंकर ने इसे टालने का प्रयास किया, लेकिन जब पार्वती की जिज्ञासा बढ़ गई तब उन्हें लगा कि अब कथा सुना देना चाहिए।

अब सवाल यह था कि अमरकथा सुनाते वक्त कोई अन्य जीव इस कथा को न सुने इसीलिए भगवान शंकर 5 तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्रि) का परित्याग करके इन पर्वतमालाओं में पहुंच गए और अमरनाथ गुफा में भगवती पार्वतीजी को अमरकथा सुनाने लगे।

अमरनाथ गुफा जाते वक्त शिवजी ने इनको त्याग दिया...

अमरनाथ गुफा की ओर जाते हुए वे सर्वप्रथम पहलगाम पहुंचे, जहां उन्होंने अपने नंदी (बैल) का परित्याग किया। तत्पश्चात चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटा (केशों) से चंद्रमा को मुक्त किया। शेषनाग नामक झील पर पहुंचकर उन्होंने अपने गले से सर्पों को भी उतार दिया। प्रिय पुत्र श्री गणेशजी को भी उन्होंने महागुनस पर्वत पर छोड़ देने का निश्चय किया। फिर पंचतरणी पहुंचकर शिवजी ने पांचों तत्वों का परित्याग किया। सबकुछ छोड़कर अंत में भगवान शिव ने इस अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और पार्वतीजी को अमरकथा सुनाने लगे।

अगले पन्ने पर... जब शिवजी कथा सुना रहे थे तब एक घटना घटी...

शुकदेव : जब भगवान शंकर इस अमृतज्ञान को भगवती पार्वती को सुना रहे थे तो वहां एक शुक (हरा कठफोड़वा या हरी कंठी वाला तोता) का बच्चा भी यह ज्ञान सुन रहा था। पार्वती कथा सुनने के बीच-बीच में हुंकारा भरती थी। पार्वतीजी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई और उनकी जगह पर वहां बैठे एक शुक ने हुंकारी भरना प्रारंभ कर दिया।

जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब वे शुक को मारने के लिए दौड़े और उसके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा। शुक जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा।भागते-भागते वह व्यासजी के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी वटिका के मुख में घुस गया। वह उनके गर्भ में रह गया। ऐसा कहा जाता है कि ये 12 वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाए।

गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था। जन्मते ही श्रीकृष्ण और अपने माता-पिता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिए जंगल की राह ली। यही जगत में शुकदेव मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए।

ये दोनों कबूतर भी अमर हो गए...
पवित्र युग ल कबूतर : श्री अमरनाथ की यात्रा के साथ ही कबूतरों की कथा भी जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार एक समय महादेव संध्या के समय नृत्य कर रहे थे कि भगवान शिव के गण आपस में ईर्ष्या के कारण ‘कुरु-कुरु’ शब्द करने लगे। महादेव ने उनको श्राप दे दिया कि तुम दीर्घकाल तक यह शब्द ‘कुरु-कुरु’ करते रहो। तदुपरांत वे रुद्ररूपी गण उसी समय कबूतर हो गए और वहीं उनका स्थायी निवास हो गया।
माना जाता है ‍कि यात्रा के दौरान पावन अमरनाथ गुफा में इन्हीं दोनों कबूतरों के भी दर्शन होते हैं। यह आश्चर्य ही है कि जहां ऑक्सीजन की मात्रा नहीं के बराबर है और जहां दूर-दूर तक खाने-पीने का कोई साधन नहीं है, वहां ये कबूतर किस तरह रहते होंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है।

माना जाता है ‍कि यात्रा के दौरान पावन अमरनाथ गुफा में इन्हीं दोनों कबूतरों के भी दर्शन होते हैं। यह आश्चर्य ही है कि जहां ऑक्सीजन की मात्रा नहीं के बराबर है और जहां दूर-दूर तक खाने-पीने का कोई साधन नहीं है, वहां ये कबूतर किस तरह रहते होंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है।


गुफा में हिमलिंग स्थापित होने की कथा...
पार्वतीजी भगवान सदाशिव से कहती हैं- 'प्रभो! मैं अमरेश महादेव की कथा सुनना चाहती हूं। मैं यह भी जानना चाहती हूं कि महादेव गुफा में स्थित होकर अमरेश क्यों और कैसे कहलाए?'
सदाशिव भोलेनाथ बोले, ‘देवी! आदिकाल में ब्रह्मा, प्रकृति, स्थावर (पर्वतादि) जंगल, (मनुष्य) संसार की उत्पत्ति हुई। इस क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर, गंधर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, कूष्मांड, भैरव, गीदड़, दानव आदि की उत्पत्ति हुई। इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टि हुई, परंतु इंद्रादि देवता सहित सभी मृत्यु के वश में थे
इसके बाद भगवान भोलेनाथ ने कहा कि मृत्यु से भयभीत देवता उनके पास आए। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की और कहा कि 'हमें मृत्यु बाधा करती है। आप कोई ऐसा उपाय बतलाएं जिससे मृत्यु हमें बाधा न करे।'‘मैं आप लोगों की मृत्यु के भय से रक्षा करूंगा’, कहते हुए सदाशिव ने अपने सिर पर से चंद्रमा की कला को उतारकर निचोड़ा और देवगणों से बोले, ‘यह आप लोगों के मृत्युरोग की औषधि है।'
उस चंद्रकला के निचोडऩे से पवित्र अमृत की धारा बह निकली और वही धारा बाद में अमरावती नदी के नाम से विख्यात हुई। चंद्रकला को निचोड़ते समय भगवान सदाशिव के शरीर पर जो अमृत बिंदु गिरे वे सूख गए और पृथ्वी पर गिर पड़े।
पावन गुफा में जो भस्म है, वे इसी अमृत बिंदु के कण हैं, जो पृथ्वी पर गिरे थे। सदाशिव भगवान देवताओं पर प्रेम न्योछावर करते समय स्वयं द्रवीभूत हो गए। देवगण सदाशिव को जलस्वरूप देखकर उनकी स्तुति में लीन हो गए और बारंबार नमस्कार करने लगे।
भोलेनाथ ने देवताओं से कहा, ‘हे देवताओं! तुमने मेरा बर्फ का लिंग शरीर इस गुफा में देखा है। इस कारण मेरी कृपा से आप लोगों को मृत्यु का भय नहीं रहेगा। अब तुम यहीं पर अमर होकर शिव रूप को प्राप्त हो जाओ। आज से मेरा यह अनादि लिंग शरीर तीनों लोकों में अमरेश के नाम से विख्यात होगा।'
देवताओं को ऐसा वर देकर सदाशिव उस दिन से लीन होकर गुफा में रहने लगे। भगवान सदाशिव ने अमृत रूप सोमकला को धारण कर देवताओं की मृत्यु का नाश किया, तभी से उनका नाम अमरेश्वर प्रसिद्ध हुआ।








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