वैष्णो देवी माता से संबंधित संपूर्ण जानकारी एवं माता की कथा

 

वैष्णो देवी 




अगर आप पहली बार वैष्णो देवी माता के दर्शन करने जा रहे हो यह आर्टिकल आपके लिए महत्वपूर्ण है इसके  माध्यम से आपको वैष्णो देवी माता की दर्शन में बहुत सहायता प्राप्त होगी 
माता वैष्णो देवी मंदिर तक की यात्रा को देश के सबसे पवित्र और कठिन तीर्थ यात्राओं में से एक माना जाता है और इसकी वजह है यह है माता का दरबार जम्मू-कश्मीर स्थित त्रिकूटा की पहाड़ियों में एक गुफा में है जहां तक पहुंचने के लिए 12 किलोमीटर की मुश्किल चढ़ाई करनी पड़ती है।
अगर आप पहली बार वैष्णो देवी यात्रा पर जा रहे हैं तो इससे जुड़ी तमाम जानकारियां हासिल करके ही जाएं जिससे की आपको यात्रा में कोई परेशानी न हो। यहां हम आपको वैष्णों देवी यात्रा से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियां दे रहे हैं। चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है... इस राग को सदियों से वे लोग दोहराते आ रहे हैं जो देश की मुश्किल आध्यात्मिक यात्राओं में से एक वैष्णो देवी की यात्रा पर जाते हैं। दुनियाभर के हिंदू धर्म को मानने वाले श्रद्धालुओं के मन में माता वैष्णो देवी मंदिर को लेकर अलग ही आस्था रहती है। माता वैष्णो देवी मंदिर तक की यात्रा को देश के सबसे पवित्र और कठिन तीर्थ यात्राओं में से एक माना जाता है और इसकी वजह है यह है माता का दरबार जम्मू-कश्मीर स्थित त्रिकूट पर्वत पर एक गुफा में है जहां तक पहुंचने के लिए 13 किलोमीटर की मुश्किल चढ़ाई करनी पड़ती
वैष्णो देवी तीर्थ स्थान समुद्र तल से 5 हजार 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और बेस कैंप कटरा से माता का दरबार जिसे भवन भी कहते हैं तक पहुंचने के लिए करीब 13 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है। माता वैष्णो देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल चढ़ाई करना जरूरी नहीं है। आप चाहें तो घोड़ा, खच्चर, पिट्ठू या पालकी की सवारी भी कर सकते हैं जो बड़ी आसानी से कटरा से भवन तक जाने के लिए मिल जाते हैं। इसके अलावा कटरा से सांझी छत के बीच नियमित रूप से हेलिकॉप्टर सर्विस भी मौजूद है। सांझी छत से आपको सिर्फ 2.5 किलोमीट की पैदल यात्रा करनी होगी

यात्रा बन गई है थोड़ी आसान




मुश्किलों से भरी इस यात्रा के बावजूद हर साल करीब 1 करोड़ श्रद्धालु माता वैष्णो देवी के दर्शन करने पहुंचते हैं। यात्रा को पूरा करने में कितना वक्त लगेगा यह वहां के मौसम, भीड़ और आपकी स्पीड पर निर्भर करता है। वैसे तो पिछले कई सालों में वैष्णो देवी की यात्रा में कई सुविधाएं जुड़ गई हैं और यात्रा आसान हो गई है। पहाड़ को काटकर प्लेन रास्ता बना दिया गया है। चढ़ाई के दौरान पूरे रास्ते में जगह-जगह आराम के लिए शेड्स, शाकाहारी खाना, पानी हर चीज की व्यवस्था है जो चौबीसों घंटे चलती रहती है।

कटरा है वैष्णो देवी का बेस कैंप

जम्मू का छोटा सा शहर कटरा वैष्णो देवी के बेस कैंप के रूप में काम करता है जो जम्मू से 50 किलोमीटर दूर है। यात्रा शुरू करने से पहले रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है क्योंकि रजिस्ट्रेशन स्लिप के आधार पर ही मंदि में दर्शन करने का मौका मिलता है। कटरा से भवन के बीच कई पॉइंट्स हैं जिसमें बाणगंगा, चारपादुका, इंद्रप्रस्थ, अर्धकुवांरी, गर्भजून, हिमकोटी, सांझी छत और भैरो मंदिर शामिल है लेकिन यात्रा का मिड-पॉइंट अर्धकुंवारी है। यहां भी माता का मंदिर है जहां रुककर लोग माता के दर्शन करने के बाद आगे की 6 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। वैसे इसी साल 19 मई 2018 को बाणगंगा से अर्धकुंवारी के बीच नए रास्ते का उद्घाटन किया गया है ताकि मौजूदा 6 किलोमीटर के रास्ते पर श्रद्धालुओं की भीड़ को कम किया जा सके।


कब जाएं वैष्णो देवी?


वैसे तो वैष्णो देवी की यात्रा पूरे साल खुली रहती है औऱ यहां कभी भी जा सकते हैं लेकिन गर्मियों में मई से जून और नवरात्रि (मार्च से अप्रैल और सितंबर से अक्टूबर) के बीच पीक सीजन होने की वजह से श्रद्धालुओं की जबरदस्त भीड़ देखने को मिलती है। इसके अलावा बारिश के मौसम में भी जुलाई-अगस्त में यात्रा करने से बचना चाहिए क्योंकि यात्रा मार्ग पर फिसलन की वजह से चढ़ाई मुश्किल हो जाती है। इसके अलावा दिसंबर से जनवरी के बीच यहां जबरदस्त ठंड रहती है।

हवाई मार्ग- जम्मू का रानीबाग एयरपोर्ट वैष्णो देवी का नजदीकी एयरपोर्ट है। जम्मू से सड़क मार्ग के जरिए वैष्णो देवी के बेस कैंप कटरा पहुंचा जा सकता है जिसकी दूरी करीब 50 किलोमीटर है। जम्मू से कटरा के बीच बस और टैक्सी सर्विस आसानी से मिल जाती है।

रेल मार्ग- नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मू और कटरा दो हैं। देशभर के मुख्य शहरों से जम्मू रेल मार्ग के जरिए जुड़ा हुआ है। इसके अलावा वैष्णो देवी का बेस कैंप कटरा भी अब एक रेलवे स्टेशन बन गया है। जम्मू-उधमपुर रेल रूट पर स्थित है श्री माता वैष्णो देवी कटरा रेलवे स्टेशन जिसकी शुरुआत साल 2014 में हुई थी। दिल्ली के अलावा कई दूसरे शहरों से भी यहां तक सीधी ट्रेनें आती हैं। आप चाहें तो कटरा तक सीधे ट्रेन से आ सकते हैं औऱ फिर यहां से माता के दरबार तक पैदल यात्रा शुरू कर सकते हैं

सड़क मार्ग देश के विभिन्न हिस्सों से जम्मू सड़क मार्ग के जरिए भी जुड़ा हुआ है और जम्मू होते हुए सड़क मार्ग से कटरा तक पहुंचा जा सकता है और फिर वहां से त्रिकूटा की पहाड़ियों की चढ़ाई।

न चीजों को जरूर रखें साथ
बेस कैंप कटरा जहां समुद्र तल से 2 हजार 500 फीट की ऊंचाई पर है वहीं वैष्णो देवी का मंदिर समुद्र तल से 5 हजार 200 फीट की ऊंचाई पर लिहाजा इन दोनों जगहों के तापमान में भी काफी अंतर देखने को मिलता है। अगर मॉनसून में यात्रा कर रहे हों तो रेनकोट या छाता साथ जरूर रखें। सर्दियों के मौसम में ढेर सारे ऊनी कपड़े, जैकेट्स, टोपी और ग्लव्स साथ रखना न भूलें। हालांकि यात्रा के दौरान रास्ते में कंबल भी मिलते हैं। चढ़ाई के दौरान आरामदेह जूते पहनें। इसके अलावा गर्मी के मौसम में भी हल्के गर्म कपड़े साथ रख सकते हैं क्योंकि हो सकता है ऊपर भवन तक पहुंचने पर अगर मौसम बदल जाए तो ठंड लग सकती है।

वैष्णो देवी यात्रा विवरण

वैष्णो देवी यात्रा (Vaishno Devi Yatra) हिंदू धर्म की प्रमुख तीर्थयात्राओं में से एक है जो भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में स्थित वैष्णो देवी मंदिर को प्राप्त करती है। यह यात्रा सालभर चलती है और लाखों श्रद्धालु इसे पूरा करने के लिए प्रतिवर्ष आते हैं।

यात्रा की शुरुआत:

वैष्णो देवी मंदिर स्थित है त्रिकूट पर्वतीय श्रेणी में, जो जम्मू से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्रद्धालुओं को सबसे पहले कटरा नामक स्थान तक पहुंचना होता है। वहां से यात्रियों को मंदिर तक पहुंचने के लिए दो विकल्प होते हैं - पैदल चलना या पोनी, पालकी या हेलीकॉप्टर का उपयोग करना। आम तौर पर, पैदल यात्रा करने का अनुभव श्रद्धालुओं के लिए प्रामुख होता है, जिसमें उन्हें ट्रेकिंग के दौरान प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना पड़ता है।

पैदल यात्रा:

पैदल यात्रा का मार्ग जंगलों के बीच से गुजरता है, जिसमें विशाल पहाड़ी चट्टानों की अद्वितीय दृश्य प्राकृतिक रूप से प्रकट होती है। यात्रा में तीन मुख्य पहाड़ी चट्टानें होती हैं - बंगंगा, अर्धकुंडी, और संजीवनी चट्टान। इनमें से बंगंगा जलस्रोत स्थान पर होती है और यहां पानी की एक छोटी नदी होती है जिसे पीने का श्रद्धा का रूप माना जाता है।

पोनी, पालकी और हेलीकॉप्टर की सेवा:

यदि किसी श्रद्धालु को पैदल चलने में कठिनाई होती है, तो उन्हें पोनी, पालकी या हेलीकॉप्टर की सेवा का उपयोग करने का विकल्प उपलब्ध होता है। पोनी और पालकी सेवा को कटरा से शुरू किया जा सकता है और यहां तक पहुंचने के लिए आपको आगे के ट्रैक के बारे में व्यवस्थाएं करनी होंगी। हेलीकॉप्टर सेवा कटरा से संजीवनी चट्टान तक उपलब्ध है और यह सबसे तेज और आसान तरीका है मंदिर तक पहुंचने का।

मंदिर और दर्शन:

वैष्णो देवी मंदिर में पहुंचने के बाद, श्रद्धालुओं को मंदिर के अंदर आराम से चलने की अनुमति दी जाती है। मंदिर में मां वैष्णो देवी की प्रतिमा स्थापित है और भक्तों को दर्शन के लिए अनुमति मिलती है। श्रद्धालुओं को अन्य मंदिरों और पूजा स्थलों की भी यात्रा करने का भी मौका मिलता है। मंदिर यात्रा के बाद, श्रद्धालुओं को वैष्णो देवी मंदिर प्रशाद भी मिलता है, जिसे प्रभावशाली माना जाता है।

वैष्णो देवी यात्रा अपूर्णताओं और श्रद्धालुओं के लिए आयात करने वाली समस्याओं के बावजूद एक आध्यात्मिक और मानसिक अनुभव है। इस यात्रा का महत्वपूर्ण स्थान हिन्दू धर्म में है और यहां जाने के लिए लोगों की भरपूर मानसिक और शारीरिक तैयारी की जरूरत होती है।

वैष्णो देवी माता की कथा

ये है माता वैष्णो देवी की सर्वाधिक प्रचलित कथा.

सनातन  धर्म को मानने वाले माता वैष्णो देवी की महिमा गाते नहीं थकते हैं. हमारे धर्मशास्त्रों में कलयुग में लोगों के कष्ट हरने के लिए देवी-देवताओं के नामजप के साथ-साथ कथाएं भी बेहद उपयोगी बताई गई हैं. स्थान और काल में भेद की वजह से कथाओं में भी कुछ अंतर पाए जाते हैं.सनातन धर्म को मानने वाले माता वैष्णो देवी की महिमा गाते नहीं थकते हैं. हमारे धर्मशास्त्रों में कलयुग में लोगों के कष्ट हरने के लिए देवी-देवताओं के नामजप के साथ-साथ कथाएं भी बेहद उपयोगी बताई गई हैं. स्थान और काल में भेद की वजह से कथाओं में भी कुछ अंतर पाए जाते हैं

बस मन में सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए, प्रभु कृपा अवश्य करते हैं. वैसे तो माता वैष्णो देवी से जुड़ी कई कथाएं हैं, पर जो कथा सबसे अधि‍क प्रचलित है, वह आगे दी जा रही है...

वैष्णो देवी ने अपने एक परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी लाज बचाई. माता ने पूरे जगत को अपनी महिमा का बोध कराया. तब से आज तक लोग इस तीर्थस्थल की यात्रा करते हैं और माता की कृपा पाते हैं.

कटरा से कुछ दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे. वे नि:संतान होने से दु:खी रहते थे. एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया. मां वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं. पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गईं, पर मां वैष्णो देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं, ‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ.’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया. वहां से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया

भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांववासी अचंभित थे कि वह कौन सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? इसके बाद श्रीधर के घर में अनेक गांववासी आकर भोजन के लिए जमा हुए. तब कन्या रूपी मां वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया. भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई, तब उसने कहा कि मैं तो खीर- पूड़ी की जगह मांस खाऊंगा और मदिरापान करूंगा.

तब कन्या रूपी मां ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के यहां का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता. किंतु भैरवनाथ ने जान-बूझकर अपनी बात पर अड़ा रहा. जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब मां ने उसके कपट को जान लिया. मां वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं. भैरवनाथ भी उनके पीछे गया.माना जाता है कि मां की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान भी थे. हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए. आज यह पवित्र जलधारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है. इसके पवित्र जल को पीने या इसमें स्नान करने से श्रद्धालुओं की सारी थकावट और तकलीफें दूर हो जाती हैं.

इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ माह तक तपस्या की. भैरवनाथ भी उनके पीछे वहां तक आ गया. तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे. भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी. तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं. यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है.

अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है. यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था. गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया. माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा. फिर भी वह नहीं माना. माता गुफा के भीतर चली गईं. तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी गुफा के बाहर थे और उन्होंने भैरवनाथ से युद्ध किया. भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी. जब वीर लंगूर निढाल होने लगा, तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया. भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा. उस स्थान को भैंरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता हैं
जिस स्थान पर मां वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा अथवा भवन के नाम से प्रसिद्ध है. इसी स्थान पर मां महाकाली दाएं), मां महासरस्वती (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) पिंडी के रूप में गुफा में विराजमान हैं. इन तीनों के सम्मिलत रूप को ही मां वैष्णो देवी का रूप कहा  जाता है
कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी. माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी. उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा. उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद करीब पौने तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई करके भैरवनाथ के दर्शन करने जाते हैं.
इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं. इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए. वे त्रिकुटा इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं. इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए. वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था, अंततः वे गुफा के द्वार पर पहुंचे. उन्होंने कई विधियों से पिंडों की पूजा को अपनी
दिनचर्या बना ली. देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं. वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया. तब से श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं.

आज भी बारहों मास वैष्णो देवी के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है. सच्चे मन से याद करने पर माता सबका बेड़ा पार कर ती है!

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