मक्‍केश्‍वर महादेव शिवलिंग कहा है ये शिवलिंग जानिए संपूर्ण जानकारी

 

मक्‍केश्‍वर महादेव शिवलिंग 




इस्लाम में सर्वाधिक पूजनीय स्थल ‘काबा’ भी प्रागैस्लामी समय का शिवमन्दिर ही है जिसकी घनाकार इमारत के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में शिवलिंग ही स्थापित है जिसे अरबी में ‘अल्-हज़र-अल्-अस्वद’ और फ़ारसी में ‘संग-ए-अस्वद’ अथवा ‘काला पत्थर’ कहा जाता है। ‘संग’ का अर्थ है पत्थर और ‘अस्वद’ का अर्थ है अश्वेत (काला)

यदि मुसलमान अपने सबसे पूजनीय काले पत्थर का हिंदुत्व से कोई सम्बन्ध नहीं मानते हैं, तो इसे काबा के ईशान कोण में ही क्यों स्थापित किया गया? क्योंकि इस्लाम में तो प्रत्येक वैदिक मान्यता का विपरीत ही किया जाता है। उल्लेखनीय है कि काबा के ईशान कोण में स्थापित शिवलिंग पर ॐ की आकृति भी स्पष्ट उत्कीर्ण है। संलग्न पहले चित्र को जूम करके देखें। यदि यह शिवलिंग नहीं है, तो इसपर ‘ॐ’ क्यों उत्कीर्ण है?

काबा में शिव और मक्का मदीना का रहस्य

द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का मानना है कि मक्का में मक्केश्वर महादेव मंदिर है। मुहम्मद साहब भी शैव थे, इसलिए वे मक्केश्वर महादेव को मानते थे। एक बार वहां लोगों ने बुद्ध की मूर्ति लगा थी, वह इसके बहुत विरोधी थें। अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के काबा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। इराक और सीरिया में सुबी नाम से एक जाति थी यही साबिईन है। इन साबिईन को अरब के लोग बहुदेववादी मानते थे। कहते हैं कि साबिईन अर्थात नूह की कौम। माना जाता है कि भारतीय मूल के लोग बहुत बड़ी संख्या में यमन में आबाद थे, जहां आज भी श्याम और हिन्द नामक किले मौजूद हैं। विद्वानों के अनुसार सऊदी अरब के मक्का में जो काबा है, वहां कभी प्राचीन काल में 'मुक्तेश्वर' नामक एक शिवलिंग था जिसे बाद में 'मक्केश्वर' कहा जाने लगा।

अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है 'मक्केश्वर लिंग' (मक्केश्वर महादेव)
मक्का के गेट पर साफ-साफ लिखा था कि काफिरों का अंदर जाना गैर-कानूनी है। कहा जा रहा है अब इस बोर्ड को उतार दिया गया है और लिख दिया है नॉन-मुस्लिम्स का अंदर जाना माना है। इसका मतलब है कि ईसाई, जैनी या बौद्ध धर्म को भी मानने वाले इसके अंदर नहीं जा सकते हैं।

जिस प्रकार हिंदुओं की मान्यता होती है कि गंगा का पानी शुद्ध होता है ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी अबे जम-जम के पानी को पाक मानते हैं। जिस तरह हिंदू गंगा स्नान के बाद इसके पानी को भरकर अपने घर लाते हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी मक्का के आबे जम-जम का पानी भर कर अपने घर ले जाते हैं। ये भी एक समानता है कि गंगा को मुस्लिम भी पाक मानते हैं और इसकी आराधना किसी न किसी रूप में जरूर करते हैं।




पहले राजा भोज ने मक्का में जाकर वहां स्थित प्रसिद्ध शिव लिंग मक्केश्वर महादेव का पूजन किया था, इसका वर्णन भविष्य-पुराण में निम्न प्रकार है :-

"नृपश्चैवमहादेवं मरुस्थल निवासिनं !
गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्य समन्विते :
चंद्नादीभीराम्भ्यचर्य तुष्टाव मनसा हरम !
इतिश्रुत्वा स्वयं देव: शब्दमाह नृपाय तं!
गन्तव्यम भोज राजेन महाकालेश्वर स्थले !! "



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