श्री पदमनाभास्वामी मंदिर के सातवे दरवाजे का रहस्य
श्री पदमनाभास्वामी मंदिर
मंदिर की कहानी
श्री पद्मनाभास्वामी मंदिर. केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर है. भारत में वैष्णववाद से जुड़े 108 मंदिरों में से एक. इसे सबसे पहले किसने बनाया, कोई नहीं जानता. मान्यता है कि इस स्थान पर सबसे पहले भगवान विष्णु की मूर्ति प्राप्त हुई थी, जिसके बाद उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया. मंदिर के समीप ही एक सरोवर है, जिसे ‘पद्मतीर्थ कुलम’ कहा जाता है.
ये मंदिर चेरा और द्रविड़ शैली की वास्तुकला का एक खूबसूरत मिश्रण है और केरल साहित्य और संस्कृति का एक अनूठा संगम भी. यहांं ऊंची दीवारें हैं और 16वीं शताब्दी का गोपुरम भी. मार्तंड वर्मा ने 1733 में इसका पुनर्निर्माण करवाया था. मंदिर की सरंचना में सुधार कार्य किए जाते रहे हैं.
यहां गर्भगृह में भगवान विष्णु की एक विशाल मूर्ति, शेषनाग पर शयन मुद्रा में मौजूद है. भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को ही ‘पद्मनाभ’ कहा जाता है. और यहां विराजमान भगवान पद्मनाभ स्वामी के नाम से जाने जाते हैं. केवल हिन्दुओं को ही इस मंदिर में प्रवेश मिलता है. इसके लिए पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य है.
हालांकि केरल के कासरगोड में स्थित अनंतपुर मंदिर को देवता का मूलस्थान माना जाता है. लेकिन कुछ हद तक पद्मनाभस्वामी मंदिर, तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में स्थित आदिकेशव पेरूमल मंदिर की वास्तुकला से इंस्पायर्ड नज़र आता है.
पद्मनाभस्वामी मंदिर के सातवें दरवाजे का रहस्य
पद्मनाभस्वामी मंदिर के जब 6 दरवाजों को खोला गया था, उस समय करीब 1 लाख 32 हजार करोड़ का खजाना भारत सरकार को प्राप्त हुआ। वहीं अब तक इस मंदिर के 7वें दरवाजे को खोला नहीं गया है। कहा जाता है कि ये दरवाजा शापित है और इसे एक खास मंत्र के द्वारा ही खोला जा सकता है।
सातवें दरवाजे जिसको बोल्ट बी के नाम से भी जाना जाता है। उस पर एक सांप के आकार का चित्र बना हुआ है। स्थानीय लोगों के अनुसार अगर सातवें दरवाजे को खोला गया तो कई तरह की अशुभ घटनाएं होंगी। कहा जाता है कि एक बार किसी व्यक्ति ने इस दरवाजे को खोलने का प्रयास किया, लेकिन उसी समय उसको जहरीले सांप ने काट लिया था। कई लोगों की मान्यता है कि खजाने की रक्षा सांप करते हैं। इस दरवाजे पर किसी भी प्रकार का ताला नहीं लगा हुआ है।
मान्यताओं की मानें तो पद्मनाभस्वामी मंदिर के सातवें दरवाजे को गरुण मंत्र के उच्चारण करने के बाद ही खोला जा सकता है। यदि मंत्र पढ़ते वक्त पुजारी से कुछ गलती होती है, तो उसी समय उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस दरवाजे को कोई सिद्ध पुरुष ही मंत्रोच्चार करके खोल सकता है। हालांकि इस बात का अब तक कोई पता नहीं चल पाया है कि मंदिर के सातवें दरवाजे के भीतर कितना खजाना छिपा हुआ है। इस वजह से पद्मनाभस्वामी मंदिर का सातवां दरवाजा आज भी रहस्य का विषय बना हुआ है। अब तक इसके राज से पर्दा नहीं उठ पाया है।
प्रतिमा
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रमुख देवता की प्रतिमा अपने निर्माण के लिए जानी जाती है जिसमें 12008 शालिग्राम हैं जिन्हें नेपाल की नदी गंधकी के किनारों से लाया गया था। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का गर्भगृह एक चट्टान पर स्थित है और मुख्य प्रतिमा जो लगभग 18 फीट लंबी है, को अलग-अलग दरवाजों से देखा जा सकता है। पहले दरवाजे से सिर और सीना देखा जा सकता है जबकि दूसरे दरवाजे से हाथ और तीसरे दरवाजे से पैर देखे जा सकते हैं।
सौंदर्य और वास्तुशिल्प
इस मंदिर का वास्तुशिल्प पत्थर और कांसे पर की गई नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के अंदरूनी हिस्सों में सुंदर चित्र और भीति चित्र उकेरे गए हैं। इनमें से कुछ चित्र भगवान विष्णु की लेटी हुई मुद्रा, नरसिम्ह स्वामी (आधा सिंह, आधा नर जो भगवान विष्णु का रूप है), भगवान गणपति और गज लक्ष्मी की छवियाँ हैं। इस मंदिर का ध्वज स्तंभ लगभग 80 फीट ऊंचा है जिसे स्वर्ण लेपित तांबे की चादरों से ढंका गया है। इस मंदिर में कुछ रोचक ढांचे भी है जो बालि पीडा मंडपम और मुख मंडपम के रूप में हैं। यह बड़े हॉल हैं जिन्हें विभिन्न हिंदू देवताओं की सुंदर कलाकृतियों से सजाया गया है। एक और ढांचा जो आपका ध्यान आकर्षित करेगा, वह नवग्रह मंडपा है जिसकी छत पर नव ग्रह दिखाई देंगे।
गलियारा
पूर्वी हिस्से से लेकर गर्भगृह तक एक बड़ा गलियारा है जिसमें 365 और एक तिहाई कलाशिल्प वाले ग्रेनाइट पत्थर के खंबे हैं जिनमें सुंदर नक्काशी की गई है। पूरब की तरफ मुख्य प्रवेश द्वार के नीचे भूतल है जिसके नाटक शाला कहा जाता है जहाँ मलयालम महीने मीनम और तुलम के दौरान आयोजित वार्षिक दस दिवसीय त्यौहार में केरल के शास्त्रीय कला रूप – कथकली का प्रदर्शन किया जाता है।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में पूजा करने का समय
सुबह का समय - 03:30 बजे से 04:45 बजे तक (निर्माल्य दर्शन) 06:30 बजे से 07:00 बजे तक 8.30 बजे से 10:00 बजे तक 10:30 बजे से 11:10 बजे तक 11:45 बजे से 12:00 बजे तक शाम का समय – 05:00 बजे से 06:15 बजे तक 06:45 बजे से 07:20 बजे तक
नोट करें कि त्यौहारों के समय मंदिर में पूजा करने के समय बदलते रहते हैं।
मंदिर में पोशाक पहनने का नियम इस प्रकार है
मंदिर में केवल हिंदु ही प्रवेश कर सकते हैं। पोशाक पहनने का सख्त नियम है जिसका पालन मंदिर में प्रवेश करते समय करना होता है। पुरुषों को मुंडु या धोती (जो कमर में पहना जाता है और नीचे ऐड़ी तक जाता है) और किसी भी तरह की कमीज़ या शर्ट की अनुमति नहीं है। महिलाओं को साड़ी, मुंड़ुम नेरियतुम (सेट- मुंडु), स्कर्ट और ब्लाउज़ या आधी साड़ी पहनना होता है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर किराए पर धोती उपलब्ध रहते हैं। आजकल मंदिर के अधिकारी भक्तों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पैंट या चूड़ीदार के ऊपर धोती पहनने की अनुमति दे रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए लॉग ऑन करें
कैसे पहुँच
नज़दीकी रेल्वे स्टेशन – तिरुवनंतपुरम सेंट्रल, लगभग 1 किमी. दूर है । नज़दीकी एयरपोर्ट – तिरुवनंतपुरम अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट, लगभग 6 कि.मी. दूर है ।
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