2024 में जाना चाहते है मदुरई मीनाक्षी-सुंदरेश्वर तो जानिए मंदिर दर्शन की संपूर्ण जानकारी

 

 2024मदुरई मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर 






मिनाक्षी मंदिर एक ऐतिहासिक और प्राचीन हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के मुदराई शहर की वैगई नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर 2500 साल पुराने शहर मुदराई का दिल है, साथ ही तमिलनाडु राज्य के आकर्षण केंद्रों में से एक है।

 

मिनाक्षी मंदिर के बारे में

मिनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर, मिनाक्षी अम्मा मंदिर या मिनाक्षी मंदिर आदि नामों से जाना जाता है। यह मंदिर माता पार्वती को समर्पित है, जो मिनाक्षी के नाम से जानी जाती है और भगवान शिव जो सुन्दरेश्वर के नाम से जाने जाते है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना इंद्र ने की थी। जब वह अपने कुकर्मो के कारण तीर्थयात्रा पर गए थे, तब उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मुदराई का नाम मधुरा शब्द से पडा, जिसका अर्थ है मिठास। ऐसा कहा जाता है कि यह मिठास दिव्य अमृत से उत्पन्न हुई थी और भगवान शिव ने इस शहर पर अमृत की वर्ष की थी।

मदुरई कैसे पहुँचे?
मदुरई में एयरपोर्ट, ट्रेन और बस तीनो सुविधाएँ उपलब्ध है।

वायुमार्ग से मदुरई कैसे पहुँचे?


मदुरै एयरपोर्ट के जाने के लिए आपको भारत के सभी मुख्य शहरों से फ्लाइट मिल जाएगी। अगर आपके शहर से मदुरै के लिए डायरेक्ट फ्लाइट नहीं है तो पहले चेन्नई एयरपोर्ट आ जाइये। वहाँ से आप बस, टैक्सी या ट्रेन के माध्यम से मदुरई पहुँच सकते है।

ट्रेन के ज़रिए

मदुराई जाने के लिए ट्रेन का सफर सबसे उपयुक्त है। मदुरई के लिए 100 से ज्यादा ट्रेन चलती है। आपके शहर या निकटवर्ती रेलवे जंक्शन से आसानी से मदुरई के लिए डायरेक्ट ट्रेन मिल जाएगी। आप यहां से ऑटो या टैक्सी के माध्यम से मात्र 10 मिनट में मीनाक्षी मंदिर जा सकते हैं।

बस के ज़रिए


मदुरई भारत के सभी सड़क मार्गों से अच्छी तरह से जुड़ा है। आप अपने स्टेट बस टर्मिनल से गवर्नमेंट या प्राइवेट बस से मदुरई आ सकते हैं। अगर मदुरई के लिए डायरेक्ट बस नहीं है तो आप अपने शहर से कोयांबेडू (Koyambedu) स्थित चेन्नई सीएमबीटी बस स्टैंड तक आ जाइये। वहाँ से आपको मदुरई के लिए डायरेक्ट बस मिलेगी । मदुरई पहुंचकर आप मट्टुथवानी (Mattuthavani) बस स्टैंड उतर जाएं। यहां से ऑटो या टैक्सी लेकर आप मात्र 20 मिनट में मीनाक्षी मंदिर पहुँच सकते हैं।



  

मदुरई जाने का उचित समय

मदुरई में मार्च से जून तक अत्यधिक गर्मी पड़ती है। वहाँ का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। बारिश के मौसम में  आप घूमने  का आनंद नहीं के पाएंगे। इसलिए बारिश का मौसम जाने बाद सितम्बर से फरवरी के मध्य जाना ही सही होगा।

 

मदुरई में कहाँ ठहरें ?

मदुरई में कई सारी प्रायवेट होटल, धर्मशालाएं उपलब्ध है। मिनाक्षी मंदिर से पास  कुछ अच्छी धर्मशालाएं उपलब्ध है। जहाँ ठहरने से मंदिर आने जाने में आसानी होती है। आप होटल के AC और NON AC रूम ऑनलाइन वेबसाइट से बुक कर सकते है। मदुरई में रूम एडवांस में बुक करना उचित होगा क्योकि ठण्ड के मौसम में यहाँ बहुत भीड़ होती है।

 

 

मदुरई शहर का भव्य इतिहास

मदुरई शहर का शानदार इतिहास है। मदुरई शहर का निर्माण कमल के रूप में किया गया है। समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य वैभव के कारण, मदुरई को अक्सर ‘पूर्व का एथेंस’ कहा जाता है। 10वीं शताब्दी से पहले मदुरई पर पंड्या राजाओं का अधिकार था, फिर चोल राजाओं ने 13 शताब्दी के अंत तक राज्य किया। 1311 में दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने कीमती पत्थरों, रत्नों और अन्य दुर्लभ खजानों के लिए मदुरई में बहुत लूटपाट की। 1323 में पंड्या साम्राज्य के अंत के बाद मदुरई दिल्ली साम्राज्य के अधीन आ गया। 1371 में मदुरई विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय के शासन में आया। 1623 से 1659 के मध्य थिरुमलाई नायक मदुरई सबसे लोकप्रिय राजा थे। उन्होंने मदुरई शहर और उसके आसपास मीनाक्षी अम्मन मंदिर का राजा गोपुरम, पुडु मंडपम और थिरुमलाई नायक का महल जैसे कई अद्भुद निर्माण किये। जिसके कारण उन्हें आज भी मदुरै के लोगों द्वारा याद किया जाता है।

 




 

मदुरई की पौराणिक कथा

मदुरई में भगवान शिव को सुंदरेश्वर और माता पार्वती को मीनाक्षी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार मदुरई के पाण्ड्य राजा मलयध्वज की संतान विहीन थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया, तब माता पार्वती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। वे अत्यंत सुन्दर थी, उनका नाम मीनाक्षी रखा गया। मीनाक्षी देवी से विवाह करने के लिए भगवान शिव ने सुंदरेश्वर के रूप में जन्म लिया। व्यस्क होने पर मीनाक्षी देवी राज्य का शासन संभाल लिया। भगवान शिव ने उनके सामने विवाह की इच्छा व्यक्त की, जिसे मीनाक्षी देवी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उनका विवाह अतिसुन्दर, मनोहक और भव्य था। तीनो लोकों के समस्त यक्ष, गन्धर्व, देवी और देवता इस विवाह में सम्मलित होने के लिए एकत्रित हुए। भगवान विष्णु भी बैकुंठ से विवाह का संचालन के लिए आ रहे थे। देवराज इंद्र के कारण उन्हें कुछ समय अधिक लग गया। तब स्थानीय देवता कूडल अझघ्अर के द्वारा विवाह का सञ्चालन करवाया गया। भगवान विष्णु जी ने आने तक विवाह संपन्न हो चुका था। भगवान विष्णु इस घटना से रुष्ट होकर नगर की सीमा से ही लगे पर्वत अलगार कोइल में चले गये। तदोपरांत उन्हें सभी देवताओं ने मनाया, फिर वापस आकर उन्होंने मीनाक्षी-सुन्दरेश्वरर का पाणिग्रहण संस्कार कराया। इस विवाह का सम्पन्न होना एवं भगवान विष्णु को शांत करने की प्रक्रिया, इन दोनों धटनाओं को मदुरई के सबसे बडे़ त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।

मीनाक्षी देवी मंदिर का रहस्य ?

तमिलनाडु के मदुरई शहर में मीनाक्षी मंदिर है। यह मंदिर अपनी बनावट की वजह से दुनियाभर में मशहूर है। यहां का गर्भगृह लगभग 3500 साल पुराना माना जाता है। ये मंदिर भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव सुंदरेश्वर के रूप में देवी पार्वती (मीनाक्षी) से विवाह करने के लिए पृथ्वी पर यहां आए थे।यहां के विशाल प्रांगण में सुंदरेश्वर (शिव मंदिर समूह) तथा बाईं ओर मीनाक्षी देवी का मंदिर है। शिव मंदिर समूह में भगवान शिव की नटराज मुद्रा में आकर्षक प्रतिमा है। यह प्रतिमा एक रजत वेदी पर स्थित है। बाहर अनेक शिल्प आकृतियां हैं, जो केवल एक-एक पत्थर पर निर्मित हैं, साथ ही गणेशजी का मंदिर है। 45 एकड़ में फैले इस मंदिर के सबसे छोटे गुंबद की ऊंचाई 160 फीट है। दो मुख्य मंदिरों सुंदरेश्वर और मीनाक्षी के अलावा भी कई दूसरे मंदिर हैं, जहां भगवान गणेश, मुरूगन, लक्ष्मी, रूक्मणी, सरस्वती देवी की पूजा होती है। मंदिर में एक तालाब भी है पोर्थ मराई कुलम जिसका मतलब होता है सोने के कमल वाला तालाब। सोने का 165 फीट लंबा और 120 फीट चौड़ा कमल बिल्कुल तालाब के बीचों-बीच बना हुआ है। भक्तों का मानना है कि इस तालाब में भगवान शिव का निवास है। मंदिर के अंदर खंभों पर भगवान शिव की पौराणिक कथाएं लिखी हुई हैं और आठ खंभों पर देवी लक्ष्मी जी की मूर्ति बनी हुई है। इसके अलावा यहां एक बहुत ही बड़ा और सुंदर हाल है, जिसमें 1000 खंभे लगे हुए हैं। इन खंभों पर शेर और हाथी बने हुए हैं।



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