भगवान तिरुपति बालाजी के बाल हैं एकदम असली… चलिए जानते बाल जी की संपूर्ण जानकारी
भगवान तिरुपति बालाजी
तिरुपति बालाजी मंदिर को चमत्कारी मंदिर भी कहा जाता है। बता दें कि तिरुपति तिरुमला देवस्थानम भारत में सबसे अमीर और सबसे मशहूर मंदिरों में से एक है। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित इस मंदिर के प्रति दुनियाभर के लोगों की आस्था देखने को मिलती है। वेंकटेश्वर स्वामी इस मंदिर के प्रमुख देवता है , जिन्हें विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है। तिरुपति बालाजी मंदिर को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं।
तिरुपति में बाल दान करने के पीछे क्या है पूरी कहानी
तिरुपति में बाल दान करने के पीछे क्या है पूरी कहानी
भक्त आंध्र प्रदेश स्थित तिरुपति बालाजी के मंदिर जाते हैं और देश के सबसे अमीर माने जाने वाले इस मंदिर में अपने बाल दान कर आते हैं। क्या आपको पता है कि इसके पीछे क्या मान्यता है ? इस परंपरा के पीछे यह पौराणिक मान्यता चली आ रही है कि इस दान के पीछे कारण यह है कि भगवान वेंकटेश्वर कुबेरजी से लिए गए अपने ऋण को चुकाते हैं। माना जा है कि यहां भक्त जितनी कीमत के बाल दान करते हैं भगवान उससे 10 गुना ज्यादा कीमत आपको धन के रूप में लौटाते हैं। कहते हैं कि जो भी मनुष्य यहां आकर अपने बाल दान करता है उस पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। यहां पुरुष ही नहीं महिलाएं भी मन्नत पूरी होने पर अपने केश दान करती हैं।
भगवान तिरुपति बालाजी मंदिर की कहानी के बारे में अगर विस्तार से देखा जाए तो भगवान तिरुपति बालाजी का अस्तित्व आज से लाखों साल पहले ही इस धरती पर हो गया था।
पुराने कई इतिहास के पन्नों में और पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी जो भगवान विष्णु से नाराज होकर बैकुंठ धाम छोड़ कर चली गई। तब माता लक्ष्मी की नाराजगी की वजह से प्रभु विष्णु को निंद्रा में बैकुंठ धाम ने अपने पैरों से मार दिया था।
यह नजारा देखकर माता लक्ष्मी को बहुत ही ज्यादा दुख हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु जी के द्वारा ऋषि मुनि को श्राप देने की बजाय उस ऋषि मुनि को माफ किया गया। इस बात से माता जी काफी निराश हो गई थी।
उसके पश्चात भगवान विष्णु जी माता लक्ष्मी जी को ढूंढने लगे। कई दिनों तक माता लक्ष्मी को ढूंढने के बाद भगवान को पता चलता है कि लक्ष्मी जी एक कन्या के अवतार पर पृथ्वी लोक पर जन्म ले चुकी है।
माता लक्ष्मी जिन्होंने कन्या के रूप में धरती पर पद्मावती के नाम से अवतार लिया और उसके पश्चात प्रभु ने खुद धरती पर जन्म लेने का निर्णय ले लिया। भगवान ने वेंकटेश्वर महाराज के रूप में धरती पर जन्म लिया।
उसके पश्चात भगवान विष्णु जी जो वेंकटेश्वर महाराज के अवतार में थे। उन्होंने लक्ष्मी जी जाने की पद्मावती से शादी का प्रस्ताव उनके माता-पिता के सामने रखा।
उनके माता-पिता ने शादी के प्रस्ताव को खुशी-खुशी स्वीकार करते हुए भगवान विष्णु जी और लक्ष्मी जी की शादी यानी कि वेंकटेश्वर महाराज और पद्मावती जी की शादी का आयोजन कर दिया।
शादी के समय भगवान को धन की जरूरत पड़ी। ऐसे में भगवान विष्णु जी ने सभी प्राणियों और देवताओं से धन उधार लिया था। इसी मान्यता के पीछे आज के समय में जब भी कोई श्रद्धालु वहां पहुंचता है तब अपनी इच्छा के अनुसार धन भेंट करके आता है।
ऐसा माना जाता है कि तिरुपति बालाजी में धन भेट करने के बाद मनुष्य के धन में वृद्धि होती है। मनुष्य को कभी भी धन की कमी नहीं होती है और इसीलिए हर व्यक्ति तिरुपति बालाजी मंदिर अपने जीवन में एक बार जाने की इच्छा रखता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर की वास्तुकला
दक्षिणी भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में स्थित भगवान वेंकटेश्वर जी का मंदिर यानी कि तिरुपति बालाजी का मंदिर जो अद्भुत वास्तुकला का एक अनोखा उदाहरण बना हुआ है।
तिरुपति बालाजी का मंदिर जहां मंदिर पर की गई कारीगरी बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध मानी जाती हैं। काले रंग की मूर्ति किसी ने यहां पर बनाई नहीं है, यह धरती से स्वयं प्रकट हुई है।
लेकिन इसके अलावा जो मंदिर के चारों तरफ की गई कारीगरी और वास्तुकला वह बहुत ही ज्यादा अद्भुत है और देखने लायक है।
तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास
अगर तिरुपति बालाजी मंदिर के इतिहास को खंगाला जाए तो तिरुपति बालाजी मंदिर का निर्माण 300 ईसवी में शुरू हुआ था। कई राजाओं के द्वारा इस मंदिर के भविष्य निर्माण कार्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई।
18वीं सदी में मराठा जनरल रघुजी भोसले ने मंदिर निर्माण कार्य पूरा होने के बाद मंदिर की व्यवस्था और देखरेख के लिए एक स्थाई प्रबंधन समिति का आयोजन किया और इस समिति के जरिए मंदिर की देखरेख करने और मंदिर में व्यवस्था बनाए रखने के उचित प्रबंधन किए गए।
आज के समय में भी यह प्रबंधन समिति सुचारू रूप से काम कर रही है। इस प्रबंधन समिति का नाम तिरुमला तिरुपति देवस्थानम रखा गया है।
इस समिति को 1935 में टीटी के अधिनियम के माध्यम से और अधिक विकसित किया गया। वर्तमान में यह समिति पूरे मंदिर कार्यक्रम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने और मंदिर परिसर में व्यवस्था बनाए रखने के लिए तत्पर है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें