श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी, उत्तर प्रदेश चलिए जानते है संपूर्ण जानकारी ।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी
काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है। यह वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में स्थित है। यह मंदिर पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित है, और बारह ज्योतिर्लिंगस में से एक है, जो शिवमेटल के सबसे पवित्र हैं। मुख्य देवता विश्वनाथ या विश्वेश्वर नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ब्रह्मांड के शासक है। वाराणसी शहर को काशी भी कहा जाता है। इसलिए मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।
इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब 'दान हारावली' में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था। आज उत्तर प्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज ब्राह्मण है।
सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया। 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था।
अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।
सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया। 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था।
शिव का काशी से रिश्ता-
एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से हिमालय पर्वत की जगह कहीं और बसने का स्थान चुनने को कहा तो शिवजी को सारे संसार मे
राजा दिवोदास की वाराणसी नगरी बहुत पसंद आयी. तब राजा दिवोदास ने ब्रह्मा जी का तप किया और महादेव को वहां बसने नहीं दिया. ब्रह्मा जी के कहने पर शिव जी
मंदराचल पर्वत पर चले गए. वे चले तो गए लेकिन काशी नगरी के लिए अपना मोह नहीं त्याग सके. तब भगवान विष्णु ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया. उसके बाद... वाराणसी महादेव का स्थायी निवास हो गया. कई पौराणिक कथाओं में दावा किया गया है कि काशी शिव और पार्वती का आदि स्थान है और इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है. ग्रंथों में काशी विश्वनाथ का प्राचीन नाम अविमुक्तेश्वर बताया जाता है और काशी हज़ारों साल से अविमुक्तेश्वर महादेव का घर हूं.
कैसे पहुंचें:
वायु मार्ग
वाराणसी और नई दिल्ली के बीच प्रत्यक्ष दैनिक उड़ान कनेक्शन है यह वाराणसी को दिल्ली, आगरा, खजुराहो, कलकत्ता, मुंबई, लखनऊ, गया, चेन्नई, अहमदाबाद, हैदराबाद, भुवनेश्वर आदि से जोड़ता है। हवाई सेवाएँ टर्मिनल मैनेजर बाबतपुर एयरपोर्ट : 0542-2623060 एयरपोर्ट डायरेक्टर : 0542-2622155
ट्रेन द्वारा
वाराणसी एक महत्वपूर्ण और प्रमुख रेल जंक्शन है। शहर पूरे देश के सभी महानगरों और प्रमुख शहरों से रेल सेवा से जुड़ा है। नई दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, चेन्नई, ग्वालियर, मेरठ, इंदौर, गुवाहाटी, इलाहाबाद, लखनऊ, देहरादून से सीधी रेल सेवा से जुड़ा है.
सड़क के द्वारा
वाराणसी (राष्ट्रीय राजमार्ग) एनएच 2 को कलकत्ता से दिल्ली तक, एनएच 7 से कन्या कुमारी और एनएच 29 गोरखपुर के साथ जुड़ा हुआ है, जो पूरे देश में सभी प्रमुख सड़कों से जुड़ा हुआ है। कुछ महत्वपूर्ण सड़क की दूरीः आगरा 565 किमी, इलाहाबाद 128 किमी, भोपाल 791 किमी, बोधगया 240 किमी, कानपुर 330 किमी, खजुराहो 405 किमी, लखनऊ 286 किमी, पटना 246 किमी, सारनाथ 10 किमी। , लुंबिनी (नापोल) 386 किमी, कुशी नगर 250 किमी (गोरखपुर के माध्यम से), यूपीएसआरटीसी बस स्टैंड, शेर शाह सूरी मार्ग, गोलगड्डा
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